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मानवता शर्मसार: जगदलपुर में एचआईवी संक्रमित महिला से डॉक्टरों का अपमानजनक व्यवहार

जगदलपुर। जिला मुख्यालय स्थित मेडिकल कॉलेज अस्पताल से मानवता को शर्मसार करने वाला मामला सामने आया है। आरोप है कि अस्पताल के डॉक्टरों ने प्रसव के लिए पहुंची एचआईवी संक्रमित गर्भवती महिला के साथ न केवल भेदभाव किया, बल्कि उसकी गोपनीय पहचान भी अन्य लोगों के सामने उजागर कर दी।

प्रसव के लिए आई महिला, सामने ही बता दी गई HIV स्थिति

जानकारी अनुसार, महिला दूसरी बार जचकी के लिए अस्पताल पहुंची थी। आरोप है कि अस्पताल स्टाफ ने उसकी एचआईवी रिपोर्ट की गोपनीय जानकारी सरपंच और मितानिन के सामने ही उजागर कर दी। इससे महिला घबरा गई और मानसिक रूप से टूट गई।

एचआईवी होने के बाद भी बच्चे पैदा करने का शौक? — डॉक्टर का ताना

एचआईवी मरीजों के अधिकारों पर काम करने वाली संस्था BTNP Plus with HIV/AIDS ने दावा किया कि इलाज के दौरान कुछ डॉक्टरों ने महिला से अमानवीय टिप्पणी करते हुए कहा— “एचआईवी होने के बाद भी तुम्हें बच्चे पैदा करने का इतना शौक क्यों है?” संस्था के अनुसार, इस तरह का व्यवहार न केवल भेदभावपूर्ण है, बल्कि महिला के मानसिक उत्पीड़न की श्रेणी में आता है। इसके बाद महिला को वार्ड में भी अलग-थलग कर दिया गया।

एनजीओ का दावा—ऐसा पहला मामला नहीं

संस्था ने आरोप लगाया कि यह कोई अलग-थलग घटना नहीं है। वे पहले भी चार एचआईवी मरीजों की पहचान उजागर किए जाने के मामले पकड़ चुके हैं। संस्था का कहना है कि अस्पताल प्रबंधन संवेदनशील मामलों में गोपनीयता बनाए रखने में लगातार असफल रहा है।

कानून क्या कहता है?

एचआईवी और एड्स (रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम, 2017 के अनुसार, किसी भी एचआईवी संक्रमित व्यक्ति की पहचान उजागर करना गंभीर अपराध है। दोषी को दो साल तक की जेल और एक लाख रुपये तक जुर्माना हो सकता है। अस्पताल, डॉक्टर या किसी भी स्टाफ पर कठोर कार्रवाई का प्रावधान है यदि वे, गोपनीयता भंग करें या उपचार में भेदभाव करें। यह अधिनियम पूरी तरह मरीज की गोपनीयता, सम्मान और समान इलाज के अधिकार की रक्षा करता है।

अस्पताल प्रशासन पर सवाल

घटना सामने आने के बाद जिला स्वास्थ्य विभाग और मेडिकल कॉलेज प्रशासन पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। एनजीओ और सामाजिक संगठनों ने संबंधित डॉक्टरों और स्टाफ के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की मांग की है।

मानवता की मांग—सम्मान और गोपनीयता

सरकार एचआईवी पॉजिटिव गर्भवती महिलाओं के लिए PMTCT जैसी योजनाएँ चलाती है, जिनसे जन्म लेने वाले बच्चे को वायरस से बचाया जा सकता है। ऐसे में अस्पताल में भेदभावपूर्ण रवैया और पहचान उजागर करना न केवल अमानवीय है, बल्कि महिला के कानूनी अधिकारों का उल्लंघन भी है। यह मामला मेडिकल सिस्टम में मौजूद संवेदनहीनता और प्रशिक्षण की कमी की ओर गहरा इशारा करता है।

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