बस्तर संभाग में 9 दिसंबर को पूर्ण बंद रहेगा। यह बंद आदिवासी समाज और स्थानीय संगठनों द्वारा बुलाया गया है, जो हाल ही में हिरासत में हुई आदिवासी नेता जीवन ठाकुर की मौत पर विरोध जता रहे हैं।
खबर के अनुसार, जीवन ठाकुर की मौत न्यायिक हिरासत में इलाज के दौरान हुई। परिवार और समाज इसे साधारण मौत नहीं, बल्कि संदिग्ध परिस्थितियों में हुई घटना मान रहे हैं। उनका कहना है कि मौत की पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठते हैं और इसकी पारदर्शी जांच जरूरी है।
परिजनों ने आरोप लगाया है कि जीवन ठाकुर पर वन-अधिकार मामले से संबंधित FIR बिना पर्याप्त जांच के दर्ज हुई। उनका मानना है कि यह कार्रवाई “एकतरफ़ा” और “संदेहास्पद” थी। समाज का आरोप है कि मामला दर्ज करने से लेकर जेल शिफ्ट करने तक हर कदम में अनियमितताएँ हैं।
समाज ने यह भी प्रश्न उठाया है कि जीवन ठाकुर को अचानक रायपुर जेल क्यों स्थानांतरित किया गया, वह भी बिना परिवार को सूचना दिए। बाद में उनकी तबीयत बिगड़ी और अस्पताल में उनकी मौत हो गई। इस प्रक्रिया ने घटना को और विवादास्पद बना दिया है।
इन लगातार उठ रहे सवालों के चलते आदिवासी समाज में भारी आक्रोश है। लोगों को लगता है कि जीवन ठाकुर को न्याय नहीं मिला और कहीं-न-कहीं प्रशासनिक लापरवाही या दबाव इसमें शामिल हो सकता है। इस रोष ने ही बंद का रूप लिया है।
समाज और स्थानीय संगठनों ने सरकार से इस मामले की निष्पक्ष, स्वतंत्र और उच्च-स्तरीय जांच की मांग की है। उनका कहना है कि यदि पूरी प्रक्रिया की ईमानदारी से जांच हुई, तो ही सत्य सामने आएगा और न्याय मिल पाएगा।
बंद की घोषणा करते हुए संगठनों ने कहा है कि बंद शांतिपूर्ण होगा, लेकिन उनके विरोध की गंभीरता को सभी महसूस करेंगे। बाजार, दुकानें, परिवहन और कुछ सरकारी कार्यालयों के प्रभावित होने की संभावना है।
स्थानीय प्रशासन बंद को लेकर पूरी तरह सतर्क है और शांति बनाए रखने की अपील कर रहा है। अब नजर इस बात पर है कि बंद के बाद सरकार किस प्रकार की जांच समिति बनाती है और क्या जीवन ठाकुर की मौत की सच्चाई सामने आ पाती है। घटना ने बस्तर के सामाजिक और राजनीतिक माहौल में हलचल पैदा कर दी है।

