Scroll.in की रिपोर्ट के अनुसार, जयपुर की एक जिला अदालत ने जुलाई में अपने फैसले में कहा कि अदानी समूह के नेतृत्व वाली एक कोयला खनन कंपनी ने राजस्थान सरकार से परिवहन शुल्क के नाम पर 1,400 करोड़ रुपये से अधिक की वसूली की, जबकि इसका उसे कोई अधिकार नहीं था।
कार्रवाई के दौरान, राज्य सरकार ने माना कि वह बिजली संकट से बचने के लिए कंपनी की “arm- twisting” रणनीति के आगे “बहुत विनम्रता से झुकती रही।” राज्य ने कंपनी पर “हमेशा वसूली करने” और “गलत लाभ कमाने” का आरोप लगाया।
5 जुलाई को दिए गए फैसले में अदालत ने अदानी- नेतृत्व वाली कंपनी पर 50 लाख रुपये का जुर्माना लगाया और राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह इस समझौते की कैग (CAG) से ऑडिट कराए। हालाँकि, इन निर्देशों पर 13 दिन बाद राजस्थान हाई कोर्ट ने स्टे दे दिया। इसके बावजूद, यह फैसला लगभग दो दशक पुराने एक ऐसे कोयला समझौते के विवरण को पहली बार सार्वजनिक रूप से सामने लाया, जिसे भारत के सबसे विवादास्पद कोल कॉन्ट्रैक्ट्स में माना जाता है।
2007 में कोयला मंत्रालय ने छत्तीसगढ़ के घने हसदेव अरण्य क्षेत्र में स्थित पर्सा ईस्ट और केंते बसन (PEKB) कोल ब्लॉक को राजस्थान की राज्य बिजली कंपनी RRVUNL को आवंटित किया। इसमें 450 मिलियन टन से अधिक कोयला था।
इसके तुरंत बाद वसुंधरा राजे सरकार के दौरान RRVUNL ने Adani Enterprises के साथ एक ज्वाइंट वेंचर बनाया — Parsa Kente Collieries Limited (PKCL)। अदानी का हिस्सा: 74%, सरकारी कंपनी का हिस्सा: 26%….. यह मॉडल “Mine Developer and Operator (MDO)” कहलाता है, जिसमें सरकार निजी कंपनी को खनन कराने के लिए भुगतान करती है।
Scroll की रिपोर्ट के अनुसार, विशेषज्ञ इस मॉडल पर सवाल उठाते रहे हैं क्योंकि इससे निजी कंपनियाँ सरकारी खदानों से बिना जोखिम उठाए मुनाफा कमा लेती हैं।
कानूनी लड़ाई — Scroll की रिपोर्ट के मुख्य तथ्य
जुलाई 2008 में दोनों कंपनियों के बीच Coal Mining and Delivery Agreement हुआ, जिसके अनुसार खनन और कोयले को राजस्थान के पावर प्लांट तक पहुँचाना, दोनों की जिम्मेदारी अदानी- नेतृत्व वाले JV की थी।
रेलवे साइडिंग न बनने से शुरू हुआ विवाद
कोयला मार्च 2013 में निकलने लगा, लेकिन तब तक खदान से रेलवे लाइन तक की रेलवे साइडिंग तैयार नहीं थी — जबकि यह कॉन्ट्रैक्ट के अनुसार कंपनी की जिम्मेदारी थी। इसलिए दोनों पक्षों ने अस्थायी रूप से सड़क मार्ग से परिवहन कराने का फैसला किया — यह व्यवस्था कॉन्ट्रैक्ट में नहीं थी। RRVUNL ने सड़क परिवहन का पूरा खर्च उठाया, जिसकी कुल राशि 1,400 करोड़ रुपये से अधिक बनी।
मामला कैसे अदालत पहुँचा?
विवाद इन 1,400 करोड़ पर नहीं था — बल्कि अदानी-नेतृत्व वाली कंपनी ने दावा किया कि, राज्य सरकार ने परिवहन एजेंसी का खर्च लौटाने में देरी की जिस कारण उसे बैंक से कर्ज लेना पड़ा और 65 करोड़ रुपये ब्याज का नुकसान हुआ, JV ने इसी ब्याज की मांग की। राज्य ने 2018 में इसे देने से इंकार कर दिया।
2020 में कंपनी अदालत गई — लेकिन Scroll की रिपोर्ट बताती है कि उसने कॉन्ट्रैक्ट की प्रति, बोर्ड मीटिंग की कार्यवाही,वित्तीय दस्तावेज अदालत में प्रस्तुत नहीं किए। अदालत ने इसे “half told story” और “selective accounts” कहा।
Scroll.in के अनुसार अदालत ने कहा कि कंपनी ने रेलवे साइडिंग नहीं बनाई, जो उसकी जिम्मेदारी थी, फिर भी उसने सड़क परिवहन का खर्च राज्य पर डाल दिया और बाद में इसका ब्याज भी माँगा….कंपनी ने कई स्तरों पर कॉन्ट्रैक्ट का उल्लंघन करने के बावजूद लाभ कमाया।
अदालत ने कहा:
“कानून का settled principle है कि कोई अपने ही दोष का लाभ नहीं उठा सकता। “Scroll ने इस फैसले और दोनों कंपनियों की दलीलों पर प्रतिक्रिया के लिए Adani इंटरप्राइजेज और RRVUNL को ईमेल भेजा है। जवाब मिलने पर रिपोर्ट अपडेट की जाएगी।”
Adani-led firm ने PSU से 1,400 करोड़ रुपये से अधिक गलत तरीके से वसूले

