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जयपुर में टूरिस्ट ठगी का संगठित रैकेट….आम जनता की जेब पर डाका, प्रशासन की आंखें बंद

जयपुर आने वाले हजारों पर्यटक इन दिनों एक ऐसे संगठित रैकेट के शिकार बन रहे हैं, जो पिंक सिटी की चमकदार छवि के पीछे सालों से फल-फूल रहा है। रेलवे स्टेशन के बाहर बैठे कुछ ट्रैवल एजेंट ₹2000 में “15 जगह घुमाने” का आकर्षक वादा करते हैं, और पर्यटक शहर की मेहमाननवाज़ी पर विश्वास करके इनके साथ निकल भी पड़ते हैं।

लेकिन दिन समाप्त होने तक उन्हें यह अहसास हो जाता है कि वे एक गहरी, योजनाबद्ध ठगी के निशाने पर थे…जहाँ गाड़ी तो चलती है, पर असली शहर उनसे छिपा लिया जाता है। जगहें सिर्फ दूर से दिखाकर आगे बढ़ा दिया जाता है, जैसे किसी चालाक जादूगर ने उन्हें गोल-गोल घुमाकर सिर्फ समय और पैसा लूट लिया हो।

पर्यटन के नाम पर हो रहा यह खेल सिर्फ ठगी नहीं, बल्कि बेहद पेशेवर तरीके से किया जा रहा भावनात्मक और आर्थिक शोषण है….जहाँ यात्रियों की उम्मीदें, उनकी बचत और उनका विश्वास सबकुछ कुछ मिनटों में रौंद दिया जाता है। और सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि यह सब रेलवे स्टेशन के ठीक बाहर से शुरू होता है, जहाँ “पंचायती टूर एंड ट्रेवल्स” जैसे नामों के बोर्डों के नीचे एक पूरा नेटवर्क बेखौफ तरीके से चलता है, मानो उन्हें पता हो कि कोई उन्हें रोकने वाला नहीं है।

पर्यटकों से 2000 रुपये लेने के बाद शुरू होता है “देख लो और आगे बढ़ो” वाला टूर। गाड़ी किसी भी जगह पर ठीक से नहीं रुकती। पर्यटक न उतर सकते हैं, न घूम सकते हैं, न तस्वीरें ले सकते हैं। और जब वे पूछते हैं कि वादा तो 15 जगह घुमाने का था, तब उन्हें बहलाने या चुप कराने की कोशिश की जाती है।

यह भ्रम तब पूरी तरह टूट जाता है जब गाड़ी आमेर किले के पास पहुंचती है। ड्राइवर किले के मुख्य द्वार तक ले जाने की बजाय करीब एक किलोमीटर पहले गाड़ी रोक देता है। सीनियर सिटीजन हों, महिलाएँ हों या बच्चे….सबको गर्मी और चढ़ाई में पैदल जाने पर मजबूर कर दिया जाता है। और पूछने पर ड्राइवर का एक ही जवाब….गाड़ी आगे नहीं जाती… एक्स्ट्रा चार्ज लगेगा।

स्थानीय लोगों के अनुसार सही परमिट वाली गाड़ियाँ सीधे गेट तक जाती हैं। इसका मतलब साफ है.. परेशानी पर्यटक पर जानबूझकर थोपी जाती है, ताकि वे जल्दी-जल्दी यात्रा पूरी करें और ड्राइवर उन्हें अगली दुकान या मार्केट में छोड़ सके, जहाँ पहले से तय कमीशन सेटिंग मौजूद रहती है। ड्राइवरों, कुछ ट्रैवल एजेंसियों और दुकानदारों के बीच इस कमीशन-तंत्र की चर्चा प्रदेश भर के पर्यटकों के मुंह से सुनने को मिलती है। यानी पर्यटक का समय, पैसा और विश्वास.. सब एक बड़े खेल का हिस्सा है।

देशभर से आए परिवार भारी उम्मीदों और बचत के साथ राजस्थान की संस्कृति देखने आते हैं। लेकिन यहाँ उन्हें मिलता है—धोखा, अपमान और अधूरी यात्रा की कड़वाहट। कई पर्यटक शिकायत भी करते हैं, पर जवाब में उन्हें वही घिसा-पिटा वाक्य मिलता है… साहब, जो लिखना है लिख दीजिए, हमारा कुछ नहीं बिगड़ेगा। इससे बड़ा सबूत और क्या चाहिए कि यह पूरा खेल किस कदर बेखौफी और सुरक्षा के साथ चल रहा है।

और सबसे बड़ा सवाल….अख़िर रेलवे स्टेशन के बाहर इतने बड़े पैमाने पर चल रहे इस धोखाधड़ी को प्रशासन और पुलिस क्यों अनदेखा कर रहे हैं? हर दिन सैकड़ों पर्यटकों की जेब और भावनाएँ लूटी जाती हैं, लेकिन किसी स्तर पर रोकथाम दिखाई नहीं देती। शिकायतें हवा में उड़ जाती हैं और ठग अगले ही दिन फिर उसी जगह नई बोर्ड लगाकर बैठ जाते हैं।

हर साल लाखों लोग राजस्थान अपनी यादों में रंग भरने आते हैं, पर लौटते समय उनके हाथ में सिर्फ ठगी, कड़वाहट और सिस्टम पर अविश्वास बचता है। यह सिर्फ पर्यटन की बदनामी नहीं…यह आम आदमी की उम्मीदों पर एक खुला प्रहार है।

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