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हिड़मा का अंत…..बस्तर में नक्सलवाद पर निर्णायक चोट

जगदलपुर। देश के सबसे खतरनाक  माओवादी कमांडरों में शामिल माड़वी हिड़मा का मारा जाना सिर्फ एक बड़ी सुरक्षा सफलता नहीं, बल्कि बस्तर में दशकों से चल रही हिंसा के खिलाफ एक महत्वपूर्ण मोड़ है। सुकमा–आंध्र प्रदेश सीमा पर हुए इस ऑपरेशन ने नक्सली नेटवर्क को भीतर से हिला दिया है।

हिड़मा कौन था और क्यों था इतना खतरनाक?

लगभग बीस साल तक माओवादी संगठन में सक्रिय, सुकमा का रहने वाला हिड़मा जंगलों का माहिर रणनीतिकार था। माववादियों की सबसे घातक यूनिट बटालियन नंबर 1 का प्रमुख होने के कारण वह हर बड़े हमले की योजना में शामिल रहता था।

हिड़मा का नाम उन घटनाओं से जुड़ा है जिन्होंने पूरे देश को झकझोर दिया
2010 दंतेवाड़ा में 76 जवानों की शहादत
2011 ताड़मेटला में 75 जवानों की हत्या
2013 झीरम घाटी में शीर्ष कांग्रेस नेताओं की मौत,2017 सुकमा हमले, 2021 का तर्रेम एंबुश

उस पर एक करोड़ से ज्यादा का इनाम भी इसलिए था क्योंकि वह हर बार सुरक्षा घेरों को चकमा देकर निकल जाता था।

संगठन में उसकी भूमिका

माओवादी संगठन ने उसे दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी का सचिव बनाया था। उसके पास 130–150 हथियारबंद कैडरों की बटालियन थी, और दक्षिण बस्तर में लड़ाई की कमान भी उसी के हाथ में थी। उसकी मौत से माओवादी ढांचे में एक खालीपन जरूर बनेगा।

मिशन 2026 का असर दिखने लगा

केंद्र और राज्य सरकार द्वारा चलाए जा रहे ‘मिशन 2026’ के तहत सुरक्षा बल लगातार दबाव बनाए हुए हैं। IG सुंदरराज पी. ने भी इसे एक निर्णायक चरण बताया है। सरकार का संदेश साफ है…जो हथियार छोड़कर लौटेंगे, उन्हें मौका मिलेगा, और जो हिंसा में शामिल रहेंगे, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी।

क्या यह अंत की शुरुआत है?

हिड़मा का मारा जाना महत्वपूर्ण है, लेकिन इसे नक्सलवाद के पूरी तरह खत्म होने की घोषणा मान लेना जल्दबाजी होगी। संगठन में अभी भी कुछ वरिष्ठ कमांडर सक्रिय हैं। दक्षिण बस्तर का भूगोल, दूरदराज़ गांव, और लंबे समय से चले आ रहे प्रभाव अभी भी चुनौती बने हुए हैं।

फिर भी, इतना साफ है कि नक्सली आंदोलन के लिए यह एक गहरी चोट है। हिड़मा जैसा कमांडर सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक रणनीति, एक व्यवस्था और एक डर का चेहरा था। उसके खत्म होने से हिंसा की चक्रव्यूह को तोड़ने का रास्ता पहले से ज्यादा खुला है।

बस्तर के लिए, जहां वर्षों से विकास, शिक्षा और सुरक्षा..तीनों को नक्सली हिंसा ने प्रभावित किया है…यह घटना उम्मीद की किरण लेकर आई है।

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