जगदलपुर | बस्तर की आदिवासी अस्मिता एक बार फिर खतरे में है। जगदलपुर के प्रतापगज पारा क्षेत्र की शासकीय भूमि पर कथित निजी कब्ज़े की कोशिश के खिलाफ सर्व आदिवासी समाज, बस्तर संभाग (छत्तीसगढ़) ने मोर्चा खोल दिया है। समाज ने इस संबंध में कलेक्टर बस्तर को ज्ञापन सौंपकर भूमि की सुरक्षा और सामाजिक उपयोग हेतु स्थायी आवंटन की मांग की है।
समाज ने अपने आवेदन में कहा है कि शासकीय भू-खण्ड शीट नंबर 78, प्लॉट नंबर 165, रकबा 15168, क्षेत्रफल मे से लगभग 7000 वर्गफुट, वर्षों से आदिवासी समाज के सांस्कृतिक एवं सामाजिक आयोजनों में उपयोग में लाई जाती रही है। बावजूद इसके, कुछ लोगों द्वारा इस ज़मीन पर कब्ज़े की कोशिश की जा रही है।
समाज ने जताई चिंता – हमारी परंपराएं खतरे में
ज्ञापन में सर्व आदिवासी समाज ने कहा है कि यह भूमि केवल मिट्टी का टुकड़ा नहीं, बल्कि आदिवासी परंपराओं, नृत्य, संगीत, और सामाजिक मेलजोल का केंद्र रही है। इस पर निजी कब्ज़ा न केवल बस्तर की ऐतिहासिक सांस्कृतिक धरोहर के खिलाफ है, बल्कि समाज की सामूहिक पहचान पर सीधा प्रहार है।
समाज ने स्पष्ट कहा – यह भूमि आदिवासी समाज की सांस्कृतिक आत्मा से जुड़ी है। इसे किसी भी निजी उपयोग के लिए नहीं छोड़ा जा सकता। प्रशासन तत्काल कार्रवाई करे।
पहले भी किया गया था आवेदन
समाज ने बताया कि इस भूमि को सामुदायिक भवन निर्माण के लिए पहले भी (18 फरवरी 2022 को) आवेदन दिया गया था। तब इसे आदिवासी युवाओं के व्यावसायिक और सामाजिक उपयोग के लिए प्रस्तावित किया गया था।
फिर भी, हाल ही में इस भूमि पर निजी उपयोग के लिए कब्ज़ा करने की कोशिशें बढ़ने लगी हैं, जिस पर समाज ने कड़ी नाराज़गी जताई है।
सर्व आदिवासी समाज की प्रमुख मांगें
1. विवादित भू-खण्ड को सामुदायिक उपयोग हेतु संरक्षित भूमि घोषित किया जाए।
2. भूमि को सर्व आदिवासी समाज, बस्तर संभाग के नाम पर स्थायी रूप से आवंटित किया जाए।
3. स्थल पर आदिवासी सांस्कृतिक भवन का निर्माण कार्य शीघ्र शुरू किया जाए।
4. किसी भी प्रकार के निजी कब्ज़े पर तत्काल रोक लगाई जाए।
आदिवासी भवन बनेगा सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक
समाज का कहना है कि यदि यह भूमि उन्हें आवंटित की जाती है तो यहां एक सांस्कृतिक भवन बनाया जाएगा, जो आदिवासी समुदाय के आयोजनों, पारंपरिक प्रशिक्षण, नृत्य-संगीत कार्यक्रम, और सामाजिक बैठकों का केंद्र बनेगा।
कलेक्टर से त्वरित जांच की मांग
समाज ने कलेक्टर बस्तर से अपील की है कि भू-खण्ड की स्थिति की जांच कर कब्ज़ा करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाए और इस भूमि को स्थायी रूप से समाज के नाम पर दर्ज किया जाए।
बस्तर की यह लड़ाई सिर्फ़ ज़मीन की नहीं, बल्कि अपनी जड़ों और परंपराओं को बचाने की है।सर्व आदिवासी समाज का संदेश साफ़ है – “हमारी भूमि, हमारी पहचान – कोई कब्ज़ा नहीं सहेंगे।

