महाराष्ट्र के गढ़चिरोली ज़िले में नक्सल विरोधी अभियान को उस समय एक बड़ी सफलता मिली जब प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) संगठन के शीर्ष नेता मल्लोजुला वेणुगोपाल राव, जिन्हें संगठन में “भुपाथी” या “सोनू” के नाम से जाना जाता था, ने लगभग 60 अन्य नक्सली साथियों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया। यह आत्मसमर्पण नक्सल आंदोलन के इतिहास में एक बड़ा मोड़ माना जा रहा है, क्योंकि वेणुगोपाल को संगठन के रणनीतिकारों में गिना जाता था और वह केंद्रीय समिति के वरिष्ठ सदस्य रहे हैं।
आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों में संगठन के अन्य महत्वपूर्ण पदाधिकारी भी शामिल हैं, जिनमें दस डिवीजनल कमेटी के सदस्य शामिल बताए जा रहे हैं। आत्मसमर्पण के दौरान उन्होंने पुलिस के समक्ष लगभग 54 हथियार भी जमा किए, जिनमें कई अत्याधुनिक राइफलें, जैसे AK-47 और INSAS शामिल थीं।
वेणुगोपाल राव मूलतः तेलंगाना के रहने वाले हैं और कई दशकों से माओवादी आंदोलन से जुड़े रहे हैं। उन्होंने संगठन की गतिविधियों को छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, तेलंगाना और ओड़िशा जैसे राज्यों में मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। सुरक्षा एजेंसियों और राज्यों द्वारा उन पर लाखों रुपये का इनाम घोषित किया गया था।
सूत्रों के अनुसार, वेणुगोपाल ने आत्मसमर्पण के दौरान यह स्वीकार किया कि सशस्त्र संघर्ष अब बेमानी हो चुका है और माओवादी विचारधारा लोगों को सकारात्मक दिशा देने में विफल रही है। उन्होंने यह भी कहा कि लगातार बढ़ते सुरक्षा दबाव, संगठन के भीतर का असंतोष और जनसमर्थन में आई गिरावट ने उन्हें यह निर्णय लेने पर मजबूर किया।
गढ़चिरोली पुलिस और राज्य प्रशासन ने इस आत्मसमर्पण को बड़ी कामयाबी बताया है। पुलिस अधिकारियों का मानना है कि इस घटनाक्रम से अन्य नक्सलियों को भी आत्मसमर्पण के लिए प्रेरणा मिलेगी और यह घटना माओवाद से जूझ रहे क्षेत्रों में स्थायी शांति की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकती है।
हालांकि चुनौतियाँ अभी समाप्त नहीं हुई हैं। आत्मसमर्पित नक्सलियों के पुनर्वास, सामाजिक पुनर्संयोजन और सामान्य जीवन में वापसी की प्रक्रिया लम्बी और जटिल हो सकती है। सरकार ने संकेत दिया है कि सभी आत्मसमर्पण करने वालों को नियमानुसार पुनर्वास योजनाओं का लाभ दिया जाएगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह आत्मसमर्पण न केवल संगठनात्मक रूप से माओवादियों को कमजोर करेगा, बल्कि उन ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में भी संदेश देगा जहाँ अब भी नक्सली पकड़ बनाए हुए हैं।
मौजूदा आत्मसमर्पण की सफलता केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वित प्रयास, प्रभावी खुफिया तंत्र, और ज़मीनी स्तर पर प्रशासनिक विश्वास निर्माण का परिणाम है। यदि इस रफ्तार को बनाए रखा गया, तो माओवादी आंदोलन की कमर टूटना अब महज समय की बात रह जाएगी।

