दंतेवाड़ा जिले में एक DSP पर चाकू से हमला होना निस्संदेह गंभीर और चिंता जनक घटना है, लेकिन इस मामले को केवल कानून-व्यवस्था की विफलता के रूप में देखना अधूरा विश्लेषण होगा। प्रारंभिक तथ्यों से यह घटना एक पुराने व्यक्तिगत विवाद से जुड़ी प्रतीत होती है।
जानकारी के अनुसार, आरोपी महिला और संबंधित पुलिस अधिकारी के बीच पहले से रंजिश चली आ रही थी। जब अधिकारी दुर्ग में पदस्थ थे, तब महिला द्वारा उनके खिलाफ दुष्कर्म का मामला दर्ज कराया गया था, जो न्यायालय में लंबी सुनवाई के बाद चला।
उक्त प्रकरण में न्यायालय द्वारा अधिकारी को दोषमुक्त कर दिया गया था। कानूनी दृष्टि से यह निर्णय अंतिम माना जाता है, लेकिन बताया जा रहा है कि इस फैसले से महिला संतुष्ट नहीं थी और उसके भीतर नाराजगी बनी रही।
आरोप है कि इसी नाराजगी के चलते महिला अपने एक मित्र के साथ दंतेवाड़ा पहुंची और मौके का फायदा उठाकर DSP पर चाकू से हमला कर दिया। यदि जांच में यह तथ्य प्रमाणित होते हैं, तो यह घटना पूर्व नियोजित हिंसा की श्रेणी में आती है।
यहां यह रेखांकित करना आवश्यक है कि न्यायालय द्वारा दोषमुक्ति का अर्थ है कि कानून की नजर में अधिकारी निर्दोष हैं। ऐसे में किसी भी प्रकार का व्यक्तिगत प्रतिशोध न केवल अवैध है, बल्कि न्यायिक व्यवस्था को खुली चुनौती देने जैसा भी है।
हालांकि, यह भी सच है कि ऐसे विवादों में भावनात्मक और मानसिक पहलू जुड़े होते हैं, लेकिन व्यक्तिगत पीड़ा या असहमति, हिंसक कृत्य को ठहराने का आधार नहीं बन सकती।
इस घटना ने पुलिस अधिकारियों की सुरक्षा व्यवस्था पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। यदि कोई व्यक्ति अपने सहयोगी के साथ योजना बनाकर किसी वरिष्ठ अधिकारी पर हमला कर सकता है, तो सुरक्षा और खुफिया तंत्र की समीक्षा अनिवार्य हो जाती है।
प्रशासन के लिए यह आवश्यक है कि महिला और उसके मित्र दोनों की भूमिका की निष्पक्ष और पारदर्शी जांच हो। यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि हमला अचानक था या पूर्व नियोजित, और इसमें कितने लोग शामिल थे।
समाज के लिए यह घटना एक चेतावनी है कि न्यायालय के निर्णय से असहमति का समाधान कानून के भीतर ही खोजा जाना चाहिए। हिंसा और आत्मन्याय की प्रवृत्ति किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं हो सकती।
दंतेवाड़ा में DSP पर हुआ यह हमला बताता है कि जब व्यक्तिगत विवाद, न्यायिक प्रक्रिया से ऊपर रखे जाते हैं, तो परिणाम खतरनाक होते हैं। कानून का सम्मान, संयम और संस्थाओं में विश्वास ही किसी भी लोकतांत्रिक समाज की असली ताकत है।

