जगदलपुर मे शाम ढल रही थी। स्टेडियम में रंग-बिरंगे परिधान पहने खिलाड़ी, तालियों की गूंज और कैमरों की चमक के बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह मंच पर पहुँचे। बस्तर ओलंपिक का यह समापन दृश्य देखने में उत्सव था, लेकिन इसके भीतर एक लंबे संघर्ष, राज्य की नीति और भविष्य की राजनीतिक दिशा की परछाइयाँ साफ़ दिखाई दे रही थीं।
खेल एक आयोजन नहीं, एक संदेश
सरकार के लिए बस्तर ओलंपिक केवल खेल प्रतियोगिता नहीं था। यह उस बस्तर की तस्वीर बदलने की कोशिश थी, जिसे दशकों तक देश ने “नक्सल प्रभावित क्षेत्र” के नाम से जाना। अमित शाह ने खिलाड़ियों को संबोधित करते हुए कहा कि बंदूक छोड़कर बैट और भाला उठाने वाला युवा ही नए बस्तर की पहचान बनेगा। यह कथन भावनात्मक था, लेकिन साथ ही यह स्वीकारोक्ति भी कि बस्तर की पीढ़ियाँ लंबे समय तक हिंसा और असुरक्षा के बीच पली हैं।
नक्सलवाद पर निर्णायक दावा
अपने भाषण में अमित शाह ने स्पष्ट शब्दों में घोषणा की कि 31 मार्च 2026 तक देश नक्सलवाद से मुक्त होगा। यह बयान केवल नीति नहीं, बल्कि राजनीतिक प्रतिबद्धता का ऐलान था। हाल के वर्षों में बस्तर में सुरक्षा अभियानों की तीव्रता बढ़ी है, मुठभेड़ों और आत्मसमर्पण की घटनाएँ सामने आई हैं। लेकिन इतिहास गवाह है कि सुरक्षा की सफलता तब ही टिकती है जब उसके साथ विश्वास और न्याय भी चलें।
विकास का सपना, सवालों के बीच
समापन समारोह में बस्तर को 2030 तक देश का सबसे विकसित आदिवासी क्षेत्र बनाने का लक्ष्य दोहराया गया। मंच से विकास का खाका साफ़ था, लेकिन मैदान से दूर बसे गांवों में आज भी वही सवाल हैं……स्कूलों में शिक्षक, अस्पतालों में डॉक्टर, जंगलों पर अधिकार और विस्थापन का डर। खेल प्रतिभाओं को मंच देना सराहनीय है, पर संपादकीय दृष्टि से यह पूछना जरूरी है कि क्या विकास की यह कहानी स्टेडियम से बाहर भी उतनी ही तेज़ी से आगे बढ़ेगी?
राजनीति और प्रतीकवाद
अमित शाह का बस्तर आना केवल एक कार्यक्रम में शामिल होना नहीं था। यह संकेत था कि केंद्र सरकार अब बस्तर को अपनी नीतिगत सफलता की प्रयोगशाला के रूप में प्रस्तुत करना चाहती है….जहाँ सुरक्षा, विकास और सांस्कृतिक पुनर्परिभाषा एक साथ चलें। लेकिन प्रतीकों की उम्र तब तक ही होती है, जब तक वे ज़मीनी सच्चाइयों से जुड़ते रहें।
बस्तर ओलंपिक का समापन उत्सव था, पर उससे बड़ा सवाल भविष्य का है। क्या यह आयोजन बस्तर के युवाओं के लिए एक स्थायी रास्ता खोलेगा, या यह भी उन कई सरकारी पहलों में शामिल हो जाएगा, जो तस्वीरों में चमकती हैं और फाइलों में सिमट जाती हैं?
बस्तर ने बहुत वादे सुने हैं। अब वह परिणाम देखना चाहता है।
बस्तर के मैदान में खेल, मंच पर सत्ता और पृष्ठभूमि में संघर्ष

