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मांडवा वाटरफॉल : पर्यटन प्रमोशन के सरकारी दावों के बीच जमीनी हकीकत खस्ताहाल

बस्तर जिले के दरभा विकासखंड के डोडरेपाल क्षेत्र में स्थित प्रसिद्ध मांडवा वाटरफॉल (जिसे आम लोग मंडवा फॉल के नाम से जानते हैं) पर्यटन के मानचित्र पर तेजी से उभर रहा है, लेकिन इसकी जमीनी हकीकत सरकार के दावों से बिल्कुल उलट दिखाई देती है।

जहां एक ओर शासन-प्रशासन बस्तर में पर्यटन को बढ़ावा देने की बात करता है, वहीं दूसरी ओर मांडवा वाटरफॉल जैसी प्राकृतिक धरोहरों की उपेक्षा न सिर्फ सरकारी लापरवाही को उजागर करती है, बल्कि बस्तर की पर्यटन संभावनाओं पर भी गंभीर सवाल खड़े करती है।

वाटरफॉल तक पहुंचने का रास्ता आज भी कच्चा है। कई छोटे-बड़े फुलपुलिया जर्जर हालत में हैं। बरसात में ये मार्ग पर्यटकों के लिए जोखिम भरा साबित होता है, जबकि पर्यटन विकास का पहला आधार सुगम सड़क और सुरक्षित पहुंच मार्ग माना जाता है।

सुविधाओं का हाल इससे भी बदतर है। सार्वजनिक उपयोग के लिए बनाए गए सरोजिनी शौचालय में ताला लटका हुआ मिला। पर्यटक मजबूरी में खुले स्थानों का इस्तेमाल करते हैं, जिससे क्षेत्र की स्वच्छता और पर्यावरण दोनों पर प्रतिकूल असर पड़ता है।

स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि जब तक गांव की समिति इस स्थान का संचालन करती थी, तब तक स्थिति ठीक-ठाक रहती थी। पर समिति द्वारा ग्राम पंचायत को रॉयल्टी देने से इंकार के बाद पंचायत ने सभी वेरिफिकेशन पॉइंट और व्यवस्था हटाने का निर्णय ले लिया।

शौचालय में ताला क्यों? इस सवाल पर ग्रामीण युवक ने बताया कि “कांग्रेस सरकार के समय ये सार्वजनिक शौचालय तो बन गया, लेकिन आज तक यहां एक बल्ब तक नहीं लगा और न ही पानी की व्यवस्था की गई। ऐसे में इसका उपयोग कैसे हो?”

स्थिति ऐसी है कि पानी की तलाश में पर्यटकों को वाटरफॉल से 2 किलोमीटर दूर स्थित एक हाई स्कूल तक भटकना पड़ता है, जहां हैंडपंप लगा हुआ है। भीषण गर्मी के दिनों में यह परेशानी और बढ़ जाती है।

पर्यटकों की बढ़ती संख्या के बावजूद यहां बैठने की जगह, प्राथमिक चिकित्सा, सूचना पट्ट, पार्किंग और सुरक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं हैं। यह क्षेत्र की पर्यटन छवि को गंभीर रूप से प्रभावित करता है।

ग्राम पंचायत सचिव से जब इस उपेक्षा पर सवाल किया गया, तो उन्होंने साफ कहा— “सरकार से कोई मदद नहीं मिलती है, बजट न होने की वजह से ग्राम पंचायत किसी भी तरह की व्यवस्था विकसित नहीं कर पा रही है।”

सचिव की यह स्वीकारोक्ति एक बड़ी विफलता को सामने लाती है—सरकारी योजनाओं का लाभ जमीनी स्तर तक नहीं पहुंच रहा। पर्यटन स्थलों के विकास के लिए बनने वाली फाइलें कार्यालयों और घोषणाओं तक ही सीमित रह जाती हैं।

मांडवा फॉल की खस्ताहाल स्थिति यह बताने के लिए काफी है कि बस्तर में पर्यटन सिर्फ भाषणों और घोषणाओं का हिस्सा बनकर रह गया है। सुविधाओं के नाम पर आज भी इस क्षेत्र में शून्यता है, जबकि यहां हर सप्ताह बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं।

अब समय है कि प्रशासन इस मुद्दे को गंभीरता से ले, क्योंकि मांडवा वाटरफॉल सिर्फ एक प्राकृतिक स्थल नहीं, बल्कि बस्तर की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा है। अगर सरकार वास्तव में पर्यटन को बढ़ावा देना चाहती है, तो ऐसे स्थलों को उपेक्षा से निकालकर बुनियादी सुविधाओं से लैस करना ही होगा—नहीं तो “पर्यटन विकास” सिर्फ एक राजनीतिक नारा बनकर रह जाएगा।

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