जगदलपुर। छत्तीसगढ़ में कमजोर पड़ रहे नक्सलवाद को बस्तर पुलिस ने एक और बड़ा झटका दिया है। पूना मारगेम: पुनर्वास से पुनर्जीवन पहल के तहत शनिवार को कुल 10 हार्डकोर माओवादी कैडरों ने आत्मसमर्पण कर समाज की मुख्यधारा में लौटने का निर्णय लिया। पुलिस इसे बस्तर में शांति और विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मान रही है।
इस आत्मसमर्पण में सबसे बड़ा नाम है चैतू उर्फ श्याम दादा, जो DKSZC (दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी) का वरिष्ठ सदस्य और झीरम घाटी हमले का मास्टरमाइंड माना जाता है। लगभग 60 वर्षीय चैतू पर 25 लाख रुपये का इनाम था और उसने आत्मसमर्पण के दौरान अपनी AK-47 रायफल पुलिस को सौंप दी। चैतू जंगल में रहते हुए तकनीक का कुशल उपयोग करता था और उसके पास लैपटॉप, टैबलेट, सोलर पैनल व संचार उपकरण भी पाए गए।
आत्मसमर्पण करने वालों में कई इनामी और सक्रिय नक्सली शामिल हैं—सरोज (DVCM, इनाम 8 लाख), भूपेश उर्फ सहायक राम, प्रकाश, कमलेश उर्फ झितरू, जननी उर्फ रयमती कश्यप, संतोष उर्फ सन्नू, नवीन (ACM), तथा प्रोटेक्शन मिलिशिया से जुड़ी रमशीला और जयती कश्यप। इन सभी पर कुल 65 लाख रुपये का इनाम घोषित था, जिससे इस सरेंडर की रणनीतिक अहमियत और बढ़ जाती है।
आत्मसमर्पण कार्यक्रम का आयोजन शौर्य भवन, पुलिस कोऑर्डिनेशन सेंटर, लालबाग में किया गया, जहां IGP बस्तर, SP बस्तर, केंद्रीय सुरक्षा बलों के अधिकारी, सामाजिक प्रतिनिधि और नक्सलियों के परिवारजन मौजूद रहे। कार्यक्रम में आत्मसमर्पित कैडरों का रेड कार्पेट से स्वागत किया गया और उन्हें संविधान की प्रति तथा गुलदस्ता भेंट किया गया।
बस्तर पुलिस की पूना मारगेम पहल ने पिछले वर्षों में नक्सल समस्या को काफी हद तक कमजोर कर दिया है। मानवीय दृष्टिकोण, पुनर्वास योजनाएँ और लगातार चल रहे सुरक्षा अभियानों के कारण माओवादियों के संगठनात्मक ढांचे में गिरावट आई है। आत्मसमर्पण करने वाला प्रत्येक कैडर न सिर्फ सुरक्षा तंत्र को मजबूती देता है, बल्कि माओवादी नेटवर्क को अंदर से कमजोर करता है।
इस बड़े आत्मसमर्पण के बाद बस्तर पुलिस का संदेश एक बार फिर स्पष्ट हुआ है—“हथियार छोड़ो, विकास और संविधान के रास्ते पर चलो।” सुरक्षा बलों का मानना है कि इस तरह के कदम बस्तर में स्थायी शांति स्थापित करने की दिशा में निर्णायक भूमिका निभा रहे हैं और आने वाले समय में नक्सलवाद और कमजोर होगा।
AK-47 के साथ चैतू , बस्तर पुलिस के सामने 10 नक्सली

