अमित बघेल को सुप्रीम कोर्ट से कड़ा झटका लगा है, जब शीर्ष न्यायालय ने उनकी याचिका खारिज कर दी है जिसमें उन्होंने कई राज्यों में दर्ज एफआईआर को एक साथ (क्लब) करने की मांग की थी।
अदालत ने बघेल को फटकारते हुए कहा कि वह “अपनी ज़ुबान संभाले” — वह अब उन राज्यों में कानूनी प्रक्रिया का सामना करेंगे, जहां-जहां उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज हैं। उनकी ओर से तर्क दिया गया था कि ये बोलियाँ गुस्से में कही गई थीं, हर्ज का इरादा नहीं था, और इसलिए एफआईआर को केवल छत्तीसगढ़ में दर्ज मामले में ही जोड़ा जाना चाहिए।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट की बेंच — जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता — ने इस दलील को खारिज कर दिया, यह कहकर कि हर राज्य की अपनी जांच प्रक्रिया होनी चाहिए। उन्होंने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा: “राज्य पुलिस आएगी, आपको अपने-अपने राज्यों में ले जाएगी — पूरे देश की सैर का आनंद लीजिए।”
यह फैसला इसलिए अहम है क्योंकि बघेल पर कई राज्यों में, जैसे कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु, दर्जनभर से अधिक एफआईआर दर्ज हैं। सिंधी समुदाय ने उनके कथित अपमानजनक बयानों का विरोध किया था, और उन्होंने उनका पुतला फूंककर गंभीर कार्रवाई की मांग की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि ऐसे मामलों में जब आरोप विभिन्न राज्यों द्वारा लगाए गए हों, और गवाह, साक्ष्य तथा कानूनी परिस्थितियाँ अलग-अलग हों, तो क्लबिंग (एक साथ जोड़ना) संभव नहीं है। यह न्यायालय का रुख है कि प्रत्येक एफआईआर अपने राज्य की जांच प्रक्रिया के अनुसार ही आगे बढ़े।
इस फैसले का राजनीतिक और कानूनी प्रभाव बड़ा है: बघेल के लिए अब हर राज्य में अलग-अलग मुकदमा लड़ना पड़ेगा, और यह संदेश जाता है कि सार्वजनिक बयानों की जिम्मेदारी को अदालत गंभीरता से लेती है।
सुप्रीम कोर्ट से अमित बघेल को बड़ा झटका

